hindi vyAkaran_हिंदी व्याकरण - 3

hindi vyAkaran_हिंदी व्याकरण - 3

पहला भाग : वर्णविचार
पहला अध्याय - वर्णमाला (varNamAlA) / कामताप्रसाद गुरू (kAmatAprasAd guru)

वर्णमाला 1. वर्णविचार व्याकरण के उस भाग को कहते हैं, जिसमें वर्णों के आकार, भेद, उच्चारण तथा उनके मेल से शब्द बनाने के नियमों का निरूपण होता है।

2. वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड न हो सकें; जैसे - अ, इ, क्, ख्, इत्यादि। ‘सबेरा हुआ’ इस वाक्य में दो शब्द हैं, ‘सबेरा’ और ‘हुआ’।
‘सबेरा’ शब्द में साधारण रूप से तीन ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं - स, बे, रा। इन तीन ध्वनियों में से प्रत्येक ध्वनि के खंड हो सकते हैं, इसलिए वह मूल ध्वनि नहीं है। ‘स’ में दो ध्वनियाँ हैं, स् अ, और इनके कोई और खंड नहीं हो सकते इसलिए ‘स्’ और ‘अ’ मूल ध्वनि हैं। ये ही मूल ध्वनियाँ वर्ण कहलाती हैं। ‘सबेरा’ शब्द में स्, अ, ब्, ए, र्, आ | ये छह मूल ध्वनियाँ हैं। इसी प्रकार ‘हुआ’ शब्द में ह्, उ, आ| ये तीन मूल ध्वनियाँ या वर्ण हैं।

3. वर्णों के समुदाय को वर्णमाला1 कहते हैं।

हिंदी वर्णमाला में 43 वर्ण हैं। इनके दो भेद हैं - (1) स्वर (2) व्यंजन।

2 4. स्वर उन वर्णों को कहते हैं जिनका उच्चारण स्वतंत्राता से होता है और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते हैं; जैसे - अ, इ, उ, ए इत्यादि।

हिंदी में स्वर 11 हैं|

3. 1. फारसी, अँगरेजी, यूनानी आदि भाषाओं में वर्णों के नाम और उच्चारण एक से नहीं हैं इसलिए विद्यार्थियों को उन्हें पहचानने में कठिनाई होती है। इन भाषाओं में जिन (अलिफ, ए, डेल्टा आदि) को वर्ण कहते हैं, उनके खंड हो सकते हैं। वे यथार्थ में वर्ण नहीं किंतु शब्द हैं। यद्यपि व्यंजन के उच्चारण के लिए उनके साथ स्वर लगाने की आवश्यकता होती है, तो भी उसमें केवल छोटे से छोटा स्वर अर्थात् अकार मिलाना चाहिए, जैसा हिंदी में होता है।
2. संस्कृत व्याकरण में स्वरों को अच् और व्यंजनों को हल् कहते हैं।
3. संस्कृत में, ऋ, ीं, ल¤ ये तीन स्वर और हैं; पर हिंदी में इनका प्रयोग नहीं होता। ऋ (Ðस्व) भी हिंदी में आने वाले केवल तत्सम शब्दों ही में आता है; जैसेμषि, ऋण, कृपा, नृत्य, मृत्यु इत्यादि। हिंदी व्याकरण ध् 41 अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

5. व्यंजन वे वर्ण हैं जो स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते। व्यंजन 33 हैं।
1. क, ख, ग, घ, ङ।
च, छ, ज, झ, ×ा।
ट, ठ, ड, ढ, ण।
त, थ, द, ध, न।
प, फ, ब, भ, म।
य, र, ल, व,
श, ष, स, ह।
इन व्यंजनों में उच्चारण की सुगमता के लिए ‘अ’ मिला दिया गया है।

जब व्यंजनों में कोई स्वर नहीं मिला रहता तब उसका स्पष्ट उच्चारण दिखाने के लिए उनके नीचे एक तिरछी रेखा कर देते हैं जिसे हिंदी में हल् कहते हैं; जैसे - क्, थ्, म् इत्यादि।

6. व्यंजनों में दो वर्ण और हैं जो अनुस्वार और विसर्ग कहलाते हैं।
2 अनुस्वार का चिद्द स्वर के ऊपर एक बिन्दी और विसर्ग का चिद्द स्वर के आगे दो बिन्दियाँ हैं; जैसे - अं अः। व्यंजनों के समान इनके उच्चारण में भी स्वर की आवश्यकता होती है; पर इनमें और दूसरे व्यंजनों में यह अंतर है कि स्वर इनके पहले आता है और दूसरे व्यंजनों के पीछे; अ ़ ं, अं, अ, अ ़ ः, अः, क् ़ अ = क, ख् ़ अ = ख।

7. हिंदी वर्णमाला के वर्णों के प्रयोग के संबंध में कुछ नियम ध्यान देने योग्य हैं -
(अ) कुछ वर्ण केवल संस्कृत (तत्सम) शब्दों में आते हैं; जैसे -  ण्, ष्। उदाहरण - तु, ऋषि, पुरुष, गण, रामायण।
(आ) ङ् और ×ा् पृथक् रूप से केवल संस्कृत शब्दों में आते हैं; जैसे - पराङमुख, न×ा् तत्पुरुष।
(इ) संयुक्त व्यंजनों में से क्ष और ज्ञ केवल संस्कृत शब्दों में आते हैं; जैसे - मोक्ष, संज्ञा।
(ई) ङ्, ×ा, ण हिंदी में शब्दों के आदि में नहीं आते। अनुस्वार और विसर्ग भी शब्दों के आदि में प्रयुक्त नहीं होते।
(उ) विसर्ग केवल थोड़े से हिंदी शब्दों में आता है; जैसे - छः, छिः इत्यादि।

1. इनके सिवा वर्णमाला में व्यंजन और मिला दिए जाते हैं - क्ष, त्रा, ज्ञ। ये संयुक्त व्यंजन हैं और इस प्रकार मिलकर बने हैं - क् ़ ष = क्ष, त् ़ र = त्रा, ज ़ ×ा = ज्ञ।
2. अनुस्वार और विसर्ग के नाम और उच्चारण एक नहीं हैं। इनके रूप और उच्चारण की विशेषता के कारण कई वैयाकरण इन्हें अं, अः के रूप में स्वरों के साथ लिखते हैं।