LOkOktiyA - 1_लोकोक्तियाँ - 1


 लोकोक्ति का अर्थ है लोक या समाज में प्रचलित उक्ति। इसी को कहावत कहते हैं। अंग्रेजी में इसे Proverb ‘प्रावर्ब’ कहते हैं। विभिन्न विद्वानों ने लोकोक्ति की परिभाषा भिन्न-भिन्न शब्दों में की है। बेकन के अनुसार, भाषा के वे तीव्र प्रयोग, जो व्यापार और व्यवहार की गुत्थियों को काटकर तह तक पहुँच जाते हैं, लोकोक्ति कहलाते है। डॉ. जॉनसन कहते हैं कि वे संक्षिप्त वाक्य जिनको लोग प्रायः दोहराया करते हैं, लोकोक्ति कहलाते हैं। इरैस्मस का कथन है कि वे लोकप्रसिद्ध और लोकप्रचलित उक्तियां, जिनकी एक विलक्ष ढंग से रचना हुई हो, कहावत कहलाती हैं।

  ‘ऑक्सफोर्ट कनसाइज़ डिक्शनरी’ में लिखी है कि सामान्य व्यवहार में प्रयुक्त संक्षिप्त और सारपूरण उक्ति को कहावत कहते हैं। चेम्बर्स डिक्शनरी के अनुसार लोकोक्ति वह संक्षिप्त और लोकप्रिय वाक्य है जो एक कल्पित सत्य या नैतिक शिक्षा अभिव्यक्त करता है। ऐग्रीकोला कहते हैं कि कहावतें वे संक्षिप्त वाक्य हैं जिनमें आदि पुरुषों ने सूत्रों की तरह अपनी अनुभूतियों को भर दिया है। सर्वन्टीज के अनुसार कहावतें वे छोटे वाक्य हैं जिनमें लंबे अनुभव का सार हो। फ्लेमिंग की सम्पति में लोकोक्तियों में किसी युग अथवा राष्ट्र का प्रचलित और व्यावहारिक ज्ञान होता है। जब हम उपर्युक्त परिभाषाओं तथा लोकोक्तियों के विन्यास तथा प्रकृति पर विचार करते हैं तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि वे बोलचाल में बहुत आने वाले ऐसे बंधे हुए चमत्कारपूर्ण वाक्य होते हैं जिनमें किसी अनुभव या तथ्य की बातें कही गई हों अथवा कुछ उपदेश या नैतिक शिक्षा दी गई हो, और जिनमें लक्षण या व्यंजना का प्रयोग किया गया हो, जैसे ‘आंख के अन्धे नाम नयनसुख’, यहां के बाबा आदम ही निराले हैं, ‘हंसे तो हंसिए अड़े तो अड़िए’, आदि। 

अपने बेरों को कोई खट्टा नहीं बताता : अपनी वस्तु को कोई बुरी नहीं बताता.

अपने मुँह मियाँ मिट्ठू : अपने मुँह अपनी प्रशंसा करना.

अन्त भले का भला : अच्छे आदमी की अन्त में भलाई होती है।

अन्धे के हाथ बटेर : अयोग्य व्यक्ति को कोई अच्छी वस्तु मिल जाना.

अन्धों में काना राजा : मूर्ख मण्डली में थोड़ा पढ़ा-लिखा भी विद्वान् और ज्ञानी माना जाता है।

अक्ल बड़ी या भैंस : शारीरिक बल से बुद्धि बड़ी है।

अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग : सबका अलग-अलग रंग-ढंग होना.

अपनी करना पार उतरनी : अपने ही कर्मों का फल मिलता है।

अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत : समय बीत जाने पर पछताने का क्या लाभ.

आँख का अन्धा नाम नैनसुख : नाम अच्छा पर काम कुछ नहीं.

आगे कुआँ पीछे खाई : सब ओर विपत्ति.

आ बैल मुझे मार : जान-बूझकर आपत्ति मोल लेना।

आम खाने हैं या पेड़ गिनने : काम की बात करनी चाहिए, व्यर्थ की बातों से कोई लाभ नहीं.

अँधेरे घर का उजाला : घर का अकेला, लाड़ला और सुन्दर पुत्र.

ओखली में सिर दिया तो मूसली से क्या डर : जब कठिन काम के लिए कमर कस ली तो कठिनाइयों से क्या डरना.

अपना उल्लू सीधा करना : अपना स्वार्थ सिद्ध करना.

उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपराधी अपने अपराध को स्वीकार करता नहीं, उल्टा पूछे वाले को धमकाता है।

ऊँची दुकान फीका पकवान : सज-धज बहुत, चीज खराब.

एक पंथ दो काज : आम के आम गुठलियों के दाम. एक कार्य से बहुत से कार्य सिद्ध होना.

एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है : एक बुरा व्यक्ति सारे कुटुम्ब, समाज या साथियों को बुरा बनाता है।

काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है : छल-कपट से एक बार तो काम बन जाता है, पर सदा नहीं.

आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए : जो दूसरों पर निर्भर रहता है वह जीवित रहते हुए भी मृतप्राय होता है।
भगवान ने मनुष्य को हाथ-पांव दिए हैं जिससे वह अपना काम स्वयं कर ले। जो व्यक्ति दूसरे पर निर्भर रहता है उसका कहीं आदर नहीं होता. सच कहा है- 'आस पराई... जाए.'

आए की खुशी न गए का गम : हर हालत में संतोष होना.
वह बहुत सन्तोषी आदमी है। लाभ और हानि दोनों होने पर वह प्रसन्न रहता है। उसके ही जैसे लोगों के लिए कहा जाता है कि 'आये की खुशी... गम.'

इतनी सी जान गज भर की जबान : जब कोई लड़का या छोटा आदमी बहुत बढ़-चढ़ कर बातें करता है।
बच्चे को लम्बी-चौड़ी बातें करते देखकर हम सबको बड़ा आश्चर्य हुआ. रमेश ने कहा- 'इतनी सी जान... जबान.'

इधर के रहे न उधर के रहे : दोनों तरफ से जाना, दो बातों में से किसी में भी सफल न होना.
निर्मल ने गृहस्थ आश्रम छोड़कर संन्यास ले लिया, पर वह भी उससे नहीं निभा. उसे एक स्त्री से प्रेम हो गया. इस प्रकार वह न इधर का रहा न उधर का.

इधर कुआँ, उधर खाई : दो विपत्तियों के बीच में.
बुराई है आज बोलने में, न बोलने में भी है बुराई. खड़ा हूँ ऐसी विकट जगह पर, इधर कुआँ है, उधर है खाई.

इधर न उधर यह बला किधर : जब कोई न मरे न उसे आराम हो, तब कहते हैं. बेचारा साल भर से चारपाई पर पड़ा हुआ है। कोई दवा उसे लाभ नहीं पहुँचाती. सेवा करते-करते घर वाले ऊब गए हैं. उसका तो वही हाल है कि इधर न उधर... किधर.

इन तिलों में तेल नहीं निकलता : ऐसे कंजूसों से कुछ प्राप्ति नहीं होती.
तुम यहाँ व्यर्थ आए हो. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि यह तुम्हें कुछ न देंगे. इन तिलों... निकलता.

इब्तदाये इश्क है रोता है क्या आगे-आगे देखिए होता है क्या :
अभी तो कार्य का आरंभ है, इसे ही देखकर घबरा गए, आगे देखो क्या होता है।

इस हाथ दे, उस हाथ ले : दान से बहुत पुण्य और लाभ होता है।
जो मनुष्य दीन-दुखियों को दान देता है, वह सदैव सम्पन्न रहता है, उसे कभी किसी वस्तु का अभाव नहीं होता. इसीलिए कहा गया है कि इस हाथ दे, उस हाथ ले.

ईंट की लेनी पत्थर की देनी : कठोर बदला चुकाना, मुँह तोड़ जवाब देना.
आज के जमाने में सीधा होना भी एक अभिशाप है। सीधे आदमी को लोग अनेक विशेषणों से विभूषित करते हैं, जैसे भोंदू, घोंघा बसन्त आदि, किन्तु जो व्यक्ति ईंट की लेनी पत्थर की देनी कहावत चरितार्थ करता है उससे लोग डरते रहते हैं.

ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया : भगवान की माया विचित्र है। संसार में कोई सुखी है तो कोई दु:खी, कोई धनी है तो कोई निर्धन. ईश्वर की माया समझ में नहीं आती. संसार में कोई सुन्दर है तो कोई कुरुप, कोई स्वस्थ है तो कोई रुग्ण, कोई करोड़पति है तो कोई अकिंचन. इसीलिए कहा गया है कि ईश्वर की माया... छाया

उत्तम को उत्तम मिले, मिले नीच को नीच : जो आदमी जैसा होता है उसको वैसा ही साथी भी मिल जाता है।
पर भाई, ऐसा रूप तो न आँखों देखा न कानों सुना. यह तो राजकन्या के योग्य ही है। इसमें उसने अनुचित क्या किया, क्योंकि जैसी सुन्दर वह है ऐसा ही यह भी है।

उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी भीख निदान :
खेती सबसे श्रेष्ठ व्यवसाय है, व्यापार मध्यम है, नौकरी करना निकृष्ट है और भीख माँगना सबसे बुरा है। यह बुद्धिमानों का महानुभूत सिद्धांत है कि 'उत्तम खेती...निदान' पर आज कल कृषिजीवी लोग ही अधिक दरिद्री पाए जाते हैं.

उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई : जब इज्जत ही नहीं है तो डर किसका?
जब लोगों ने मुझे बिरादरी से खारिज कर ही दिया है तो अब मैं खुले आम अंग्रेजी होटल में खाना खाऊँगा.

उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपना अपराध स्वीकार न करके पूछने वाले को डाँटना, फटकारना या दोषी ठहराना.
आज एक ग्राहक ने मेज पर से किताब उठा ली. उससे पूछा तो लगा शरीफ बनने और धौंस जमाने कि तुम मुझे चोरी लगाते हो.

उल्टे बाँस बरेली को : बरेली में बाँस बहुत पैदा होता है। इसी से उसको बाँस बरेली कहते हैं.
यहाँ से बाँस दूसरी जगह को भेजा जाता है। दूसरे स्थानों से वहाँ बाँस भेजना मूर्खता है। इसलिए इस कहावत का अर्थ है कि स्थिति के विपरीत काम करना, जहाँ जिस वस्तु की आवश्यकता न हो उसे वहाँ ले जाना।

उसी की जूती उसी का सर : किसी को उसी की युक्ति से बेवकूफ बनाना.
दो-एक बार धोखा खा के धोखेबाजों की हिकमतें सीख लो और कुछ अपनी ओर से जोड़कर 'उसी की जूती उसी का सिर' कर दिखाओ.

ऊँची दुकान फीका पकवान : जिसका नाम तो बहुत हो पर गुण कम हों.
नाम ही नाम है, गुण तो ऐसे-वैसे ही हैं. बस ऊँची दुकान फीका पकवान समझ लो.

ऊँट घोड़े बहे जाए गधा कहे कितना पानी :
जब किसी काम को शक्तिशाली लोग न कर सकें और कोई कमजोर आदमी उसे करना चाहे तब ऐसा कहते हैं.

ऊँच बिलैया ले गई, हाँ जी, हाँ जी कहना : जब कोई बड़ा आदमी कोई असम्भव बात भी कहे और दूसरा उसकी हामी भरे.

ऊधो का लेना न माधो का देना : जो अपने काम से काम रखता है, किसी के झगड़े में नहीं पड़ता उसके विषय में उक्ति.

एक अनार सौ बीमार : एक चीज के बहुत चाहने वाले.
जितने लोग हैं उनके उतनी तरह के काम हैं और एक बेचारी गाँधी टोपी है जिसे सबको पार लगाना है।

एक और एक ग्यारह होते हैं : मेल में बड़ी शक्ति होती है।
यदि तुम दोनों भाई मिलकर काम करोगे तो कोई तुम्हारा सामना न कर सकेगा.

एक कहो न दस सुनो : यदि हम किसी को भला-बुरा न कहेंगे तो दूसरे भी हमें कुछ न कहेंगे.

एक चुप हजार को हरावे : जो मनुष्य चुप अर्थात शान्त रहता है उससे हजार बोलने वाले हार मान लेते हैं.

एक तवे की रोटी क्या पतली क्या मोटी : एक कुटुम्ब के मनुष्यों में या एक पदार्थ के कभी भागों में बहुत कम अन्तर होता है।

एक तो करेला (कडुवा) दूसरे नीम चढ़ा : कटु या कुटिल स्वभाव वाले मनुष्य कुसंगति में पड़कर और बिगड़ जाते हैं.

एक ही थैले के चट्टे-बट्टे : एक ही प्रकार के लोग.
लो और सुनो, सब एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं।

एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है : यदि किसी घर या समूह में एक व्यक्ति दुष्चरित्र होता है तो सारा घर या समूह बुरा या बदनाम हो जाता है।

एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती : किसी अत्यंत ऐश्वर्यशाली व्यक्ति के पूर्ण विनाश हो जाने पर इस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है।

ऐरा गैरा नत्थू खैरा : मामूली आदमी.
कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा महल के अंदर नहीं जा सकता था।

ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय : बूढ़े और बेकार मनुष्य को कोई भोजन और वस्त्र नहीं देता.
कमाते-धमाते तो कुछ हैं नहीं, केवल खाने और बच्चों को डांटने-फटकारने से मतलब है।..ऐसे बूढ़े...

ओछे की प्रीति, बालू की भीति : बालू की दीवार की भाँति ओछे लोगों का प्रेम अस्थायी होता है।

ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्य डर : कष्ट सहने पर उतारू होने पर कष्ट का डर नहीं रहता.
बेचारी मिसेज बेदी ओखली में सिर रख चुकी थी। तब मूसलों से डर कर भी क्या कर लेतीं?

औंधी खोपड़ी उल्टा मत : मूर्ख का विचार उल्टा ही होता है।

औसर चूकी डोमनी, गावे ताल बेताल : जो मनुष्य अवसर से चूक जाता है, उसका काम बिगड़ जाता है और केवल पश्चाताप उसके हाथ आता है।

कपड़े फटे गरीबी आई : फटे कपड़े देखने से मालूम होता है कि यह मनुष्य गरीब है।

कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर : समय पर एक-दूसरे की सहायता की आवश्यकता पड़ती है।

कर ले सो काम, भज ले सो राम : जो कुछ करना हो उसे शीघ्र कर लेना चाहिए, उसमें आलस्य नहीं करना चाहिए।

करनी खास की, बात लाख की : जब कोई निकम्मा आदमी बढ़-चढ़कर बातें करता है।

ओस चाटे से प्यास नहीं बुझती : किसी को इतनी थोड़ी चीज़ मिलना कि उसकी तृप्ति न हो।


और बात खोटी सही दाल रोटी : संसार की सब चीज़ों में भोजन ही मुख्य है।