LOkOktiyA - 5_लोकोक्तियाँ - 5

टंटा विष की बेल है : झगड़ा करने से बहुत हानि होती है।

टका कर्ता, टका हर्ता, टका मोक्ष विधायकाः

टका सर्वत्र पूज्यन्ते,बिन टका टकटकायते :

संसार में सभी कर्म धन से होते हैं,बिना धन के कोई काम नहीं होता.

टका हो जिसके हाथ में, वह है बड़ा जात में : धनी लोगों का आदर- सत्कार सब जगह होता है।

टट्टू को कोड़ा और ताजी को इशारा : मूर्ख को दंड देने की आवश्यकता पड़ती है और बुद्धिमानों के लिए इशारा काफी होता है।

टाट का लंगोटा नवाब से यारी : निर्धन व्यक्ति का धनी-मानी व्यक्तियों के साथ मित्रता करने का प्रयास.

टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए : ऐसा काम करना जिसमें केवल भरपेट भोजन मिले, कोई लाभ न हो.

टेर-टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे : जो अपनी हानि की बात सबसे कहा करता है उसकी साख जाती रहती है।

ठग मारे अनजान, बनिया मारे जान : ठग अनजान आदमियों को ठगता है, परन्तु बनिया जान-पहचान वालों को ठगता है।

ठुक-ठुक सोनार की, एक चोट लोहार की : जब कोई निर्बल मनुष्य किसी बलवान्‌ व्यक्ति से बार-बार छेड़खानी करता है।

ठुमकी गैया सदा कलोर : नाटी गाय सदा बछिया ही जान पड़ती है। नाटा आदमी सदा लड़का ही जान पड़ता है।

ठेस लगे बुद्धि बढ़े : हानि सहकर मनुष्य बुद्धिमान होता है।

डरें लोमड़ी से नाम शेर खाँ : नाम के विपरीत गुण होने पर.

डायन को भी दामाद प्यारा : दुष्ट स्त्र्िायाँ भी दामाद को प्यार करती हैं.

डूबते को तिनके का सहारा : विपत्त्िा में पड़े हुए मनुष्यों को थोड़ा सहारा भी काफी होता है।

डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई : थोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना.

डोली न कहार, बीबी हुई हैं तैयार : जब कोई बिना बुलाए कहीं जाने को तैयार हो.

ढाक के वही तीन पात : सदा से समान रूप से निर्धन रहने पर उक्त, परिणाम कुछ नहीं, बात वहीं की वहीं.

ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़ : जिसके पास धन नहीं होता वह गुणहीन और धनी व्यक्ति गुणवान्‌ माना जाता है।

ढेले ऊपर चील जो बोलै, गली-गली में पानी डोलै : यदि चील ढेले पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि बहुत अधिक वर्षा होगी.